लखनऊ: उत्तर प्रदेश की परिधी में…उपचुनाव के बाद सजा निकाय चुनाव का रण…आरक्षण के उस अखाड़े में आ फंसा है…जहां अदालत को आगे आना पड़ा है…लिहाजा अदालत ने निकाय चुनाव की तारीखों के ऐलान पर रोक लगा दी है…।
OBC आरक्षण को लेकर बवाल
दरअसल, बीते 5 दिसंबर को ही सूबे के सभी नगर निगमों के महापौर, नगरपालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए अधिसूचना जारी की थी…इसमें अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और महिला सीट के लिए आरक्षण का रोस्टर जारी हुआ था…लेकिन आरक्षण की इस व्यवस्था में कई लोगों के दिल टूटे तो उन्होंने अदालत में दस्तक दे दी…अधिसूचना के साथ ही आरक्षण की इस व्यवस्था पर आपत्तियों के ढेर लग गए…अदालत में दाखिल की गई याचिका मे भी ओबीसी आरक्षण को अहम आधार बनाया गया है…आरोप है कि, आरक्षण रोस्टर में ओबीसी आरक्षण की सीमा का सही तरीके से अनुपालन नहीं किया गया है…महिला आरक्षण को लेकर भी तमाम आपत्तियां हैं…।
यूपी में खाली पिछड़ा वर्ग आयोग
निकाय चुनाव के आरक्षण की व्यवस्था में पिछड़ा वर्ग आयोग का भी अहम किरदार होता है…लेकिन मौजूदा वक्त में आयोग का खाली होना भी इस व्यवस्था के बिगड़ने में एक बड़ा कारण है…सरकार के इस दूसरे कार्यकाल में अबतक आयोग में अध्यक्ष पद की तैनाती नहीं हुई है…और आयोग को ही प्रदेश में पिछड़ी जातियों के बारे में अध्ययन करता है…और इस पूरी प्रक्रिया को ट्रिपल टेस्ट कहा जाता है…।
किसने क्या कहा…
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि, उपचुनाव की हार के बाद बीजेपी डरी हुई है. जानबूझकर निकाय चुनाव को अटकाना चाहती है. ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए. वहीं अखिलेश यादव के बयान पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि, अखिलेश यादव और विपक्ष खुद चाहता है कि, चुनाव टल जाएं ।
हल निकलेगा या निकाय चुनाव का ‘रण’ टलेगा?
20 दिसंबर को इस मामले पर सुनवा होनी है. उससे पहले शहर-शहर निकाय चुनाव की तैयारियों का तस्वीर और तासीर तेज हो चली है…भावी उम्मीदवारों के होर्डिंग से लेकर टिकट की होड़ तक जोर आजमाइश है….वहीं पार्टियों के कार्यालयों पर भी भीड़ का भंवर है…सपा-बीजेपी ऑफिस में भी मंथन और चिंतन का दौर चल रहा है…इस सबके बीच सवाल यही है कि, आखिर क्यों फंसा निकाय में आरक्षण का पेंच…और सवाल ये भी है कि, क्या आरक्षण मुद्दे का हल निकलेगा या निकाय चुनाव का ‘रण’ टलेगा?