लखनऊ: बीते 8 महीने से चल रहे किसान आंदोलन का कोई नतीजा ना निकलत देख किसान संगठन अब अपनी रणनितियों को धार देने में जुट गए हैं. इन आठ महीनों में किसानों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना ये आंदोलन अब किसान ही नहीं देश के सभी संघर्षशील वर्गों का लोकतंत्र बचाने और देश बचाने का आंदोलन बन चुका है. इस अवसर पर आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शुरू करने का फैसला किया है।
मिशन यूपी उत्तराखंड
इस मिशन के तहत संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले संघर्षरत इन दो प्रदेशों के किसान संगठन सहित पूरे देश के किसान संगठन अपनी पूरी ताकत इन दो प्रांतों में आंदोलन की धार तेज करने पर लगाएंगे. इस मिशन का उद्देश्य होगा कि पंजाब और हरियाणा की तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी हर गांव किसान आंदोलन का दुर्ग बने, कोने – कोने में किसान पर हमलावर कॉरपोरेट सत्ता के प्रतीकों को चुनौती दी जाए, और किसान विरोधी भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का हर कदम पर विरोध हो. आज स्वामी सहजानंद सरस्वती, चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत की धरती पर जिम्मेवारी आन पड़ी है कि उसे भारतीय खेती और किसानों को कारपोरेट और उनके राजनैतिक दलालों से बचाना है।
मोर्चे का आह्वान…
इस मिशन के तहत संयुक्त किसान मोर्चा ने आह्वान किया है कि, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सभी टोल प्लाजा को फ्री किए जाएं, अडानी और अंबानी के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएं तथा बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के कार्यक्रमों का विरोध और उनके नेताओं का बहिष्कार किया जाए. इस मिशन को कार्य रूप देने के लिए पूरे प्रदेश में बैठकों, यात्राओं और रैलियों का सिलसिला शुरू हो रहा है।
मिशन और प्लान के चरण
चरण 1: प्रदेशों के आंदोलन में सक्रिय संगठनों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित करना
चरण २: मंडलवार किसान कन्वेंशन और जिलेवार तैयारी बैठक
चरण 3: 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में देश भर से किसानों की ऐतिहासिक महापंचायत
चरण 4: सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आयोजन
कौन से मुद्दे उठाए जाएंगे
संयुक्त किसान मोर्चा ने यह फैसला किया है कि इस मिशन के तहत राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ इन दोनों प्रदेशों के किसानों के स्थानीय मुद्दे भी उठाए जाएंगे। इनमें से कुछ निम्नांकित हैं:
● उत्तर प्रदेश सरकार ने किस वर्ष गाजे -बाजे के साथ प्रदेश के किसान का एक-एक दाना गेहूं खरीदने की घोषणा का मखौल बनाया है, प्रदेश में गेहूं के कुल अनुमानित 308 लाख टन उत्पादन में से सिर्फ 56 लाख टन ज्ञानी 18% गेहूं ही सरकार ने खरीदा है ।
● अन्य फसलों (अरहर, मसूर, उड़द, चना, मक्का ,मूंगफली, सरसों)में सरकारी खरीदी शून्य या नगण्य प्राय रही है. केंद्र सरकार की प्राइस स्टेबलाइजेशन स्कीम के तहत तिलहन और दलहन की खरीद के प्रावधान का इस्तेमाल भी नहीं के बराबर हुआ है।
● इसके चलते किसान को इस सीजन में अपनी फसल निर्धारित एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ी है। भारत सरकार के अपने पोर्टल एग्री मार्ग नेट के अनुसार उत्तर प्रदेश में मार्च से 20 जुलाई तक गेहूं का औसत रेट 1884 रुपए था जो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से 91 रुपए कम था। यही बात मूंग, बाजरा, ज्वार और मक्का की फसलों पर भी लागू होती है। सरसों, चनाऔर सोयाबीन जैसी फसलों में किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से बेहतर रेट बाजार में मिला, लेकिन उसमें केंद्र या राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं थी ।
● गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का मुद्दा अब भी ज्यों का त्यों लटका हुआ है। 14 दिन के भीतर भुगतान का वादा एक और जुमला साबित हो चुका है। आज गन्ना किसान का लगभग 12000 करोड रुपए बकाया है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद गन्ना किसानों के 5000 करोड रुपए का ब्याज का भुगतान नहीं हुआ है। 3 साल से गन्ना मूल्य ज्यों का त्यों है।
● आलू किसान को 3 वर्ष तक उत्पादन लागत नहीं मिली। आलू निर्यात पर बैन को फ्री करवाने में सरकार ने कुछ नहीं किया।
● पूरे प्रदेश के किसान आवारा पशुओं की समस्या से त्रस्त हैं। फसल के साथ जानमल का नुकसान हो रहा है। गौशाला के नाम पर शोषण और भ्रष्टाचार हो रहा है।
● खेती में बिजली की कमी और घरेलू बिजली की दरों से किसान की कमर टूट गई है।